सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वे अवरुद्ध चंडीगढ़-मोहाली मार्ग से प्रदर्शनकारियों के समूह को हटाएं। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की बेंच ने पंजाब सरकार की याचिका पर नोटिस जारी करके एक गैर सरकारी संगठन, केंद्र और चंडीगढ़ प्रशासन सहित अन्य से जवाब मांगा। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह पंजाब सरकार के रुख का समर्थन कर रहे हैं।

मेहता ने कहा, ‘‘भ्रष्टाचार की बात को छोड़कर, संघवाद की हमेशा रक्षा की जाती है। कोविड के समय में, हर राज्य और केंद्र ने मिलकर काम किया।’’ पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए। कई जनहित याचिकाओं पर नौ अप्रैल को पारित अपने आदेशों में, हाईकोर्ट ने कहा था कि बार-बार अवसर दिए जाने के बावजूद, न तो पंजाब सरकार और न ही चंडीगढ़ प्रशासन, एसएएस नगर मोहाली और चंडीगढ़ के यात्रियों को कोई समाधान देने में सक्षम हुआ। इसमें कहा गया था, ‘‘मुट्ठी भर लोगों के सड़क अवरुद्ध करने से यात्रियों और ‘ट्राइ-सिटी’ के निवासियों को असुविधा हो रही है और परेशानी जारी है।’’ इसने इस बात का संज्ञान लिया था कि इस मामले में पिछले साल नौ अक्टूबर को केंद्र को भी पक्षकार बनाया गया था। 

सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी
गौर करने वाली बात यह भी है कि करीब एक साल पहले इस मामले में पंजाब के पुलिस महानिदेशक को भी तलब किया गया था। हाईकोर्ट ने कार्यवाही स्थगित करते हुए आगे कहा था कि उसे उम्मीद है कि पंजाब और चंडीगढ़ प्रशासन अपनी नींद से जागेंगे और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन से संबंधित विभिन्न फैसलों में दी गई शीर्ष अदालत की टिप्पणियों को ध्यान में रखेंगे। हाईकोर्ट ने एनजीओ ‘अराइव सेफ सोसाइटी’ की याचिका पर यह आदेश पारित किया था, जिसमें दलील दी गई थी कि जनवरी 2023 से चंडीगढ़-मोहाली रोड पर चल रहे विरोध/मोर्चा के कारण स्थानीय निवासियों और यात्रियों को अनावश्यक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। प्रदर्शनकारी सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं, जिनमें पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना और 1993 के दिल्ली बम विस्फोट के दोषी देविंदरपाल सिंह भुल्लर शामिल हैं।

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